श्री गुरवे नम:
अहं (3)
मेरे मन का घर खरीदकर मुझे हि रक्खा चौकीदारl
कहा, न दुर्गुण घुसें पुराने, हर पल ही रहना हुशियारll
अज्ञानाभान से अज्ञानाभान तकl
पूर्ण ध्रुव सर्वकालिक सत्य है, इतिहास है कि एक सच्चा जिज्ञासु की संसार के किसी भी विषय में खोज मैं इस विषय में अज्ञानी हूँ, से आरम्भ होकर मैं अभी भी अज्ञानी हूँ पर समाप्त होती हैl लेकिन इस यात्रा में एक जिज्ञासु संसार को बहुत उन्नत कर जाता हैl स्टेफेन हाकिंग्स भी एक ऐसे ही वैज्ञानिक थे उनका योगदान संसार में अविस्मर्णीय हैl
यह अज्ञानाभान से अज्ञानाभान तक की यात्रा भग्वद्प्राप्ति पर ही समाप्त होगीl किन्तु इस यात्रा का सबसे बड़ा बाधक है अहंl
अहं को पहचाने कैसे?
अंत:करण की इन सूक्ष्म शक्तियों को प्रभावित करते है संस्कारl संसार में प्रत्येक प्राणी, पदार्थ, परिस्थिति हमें दो संकेत देते हैं; एक स्थूल (मैक्रो) जिसे थोक भी कह सकते हैंl दूसरा सूक्ष्म (माइक्रो) जिसे फुटकर भी कह सकते हैंl इन संकेतों पर हमारा मन अपने संस्कारों के अनुसार प्रतिक्रिया करता हैl
जैसे हम रेलवे स्टेशन पर खड़े हैंl हमारी गाड़ी नहीं आई हैl चारो और के प्राणी, पदार्थ, परिस्थितियों का स्वरुप हमें मैक्रो संकेत दे रहा है कि क्या क्या है, कहाँ कहाँ हैl मन इनपर कोई प्रतिक्रिया नहीं करता हैl
अब आई हमारी गाड़ी आई, मिला माइक्रो संकेत, हमारी गाड़ी! मन ने संकेत प्राप्त कर प्रतिक्रिया की, चढ़ो! हमारी बर्थ, सामान रखो! उसपर पहले से कोई बैठा है, उसे उठाने का प्रयास करो!
अहं, अपना अस्तित्व बोध कराता है, हमारी गाड़ी!, यह बुद्धि निश्चय करती है, चढो, पहले से अपनी बर्थ पर बैठे व्यक्ति को उठाओ आदिl यहाँ मन और संस्कारों का कार्य आरम्भ होता हैl
मैक्रो संकेतों तथा माइक्रो संकेतों के प्रति हमारी मानसिक प्रतिक्रिया किन बातों पर निर्भर होती है!
क्रमश:............................
