राम राघव, राम राघव, राम राघव पाहिमाम्।
राम राघव, राम राघव, राम राघव पाहिमाम् ।
भरत लक्ष्मण शत्रुहन ये रूप तुम्हरो राघव ।
दाहिका सम शक्ति सीता अग्नि सम तुम राघव ।
तुम ही माता, तुम पिता हो, तुम ही सर्वस राघव ।
तुम हो स्वामी तुम सखा हो, तुम हो मम सुत राघव ।
आत्मा को देह माना, भूल यह की राघव।
बुद्धि जाने मन न माने तुम ही मेरे राघव ।
शरण में बाधक है माया वाय बरजहु राघव ।
तुम न भूलो मोहिं हौं नहिं तोहिं भूलूँ राघव।
भुक्ति नहिं चह, मुक्ति नहिं चह, प्रेम चह तव राघव ।
तुम अगोचर निज कृपा ते, होवो गोचर राघव ।
टुक दिखा दो बाँकी झाँकी धनुषधारी राघव ।
चारों भाई जानकी माँ संग आओ राघव ।
जो न देना चहहु दर्शन आके कह दो राघव।
गीध को भी उर लगाया कौन तुम सम राघव ।
तुम ने तारा बानरहुँ कहँ हौं तो नर हौं राघव।
प्रेमवश शबरी के जूठे बेर खाये राघव ।
शिला पर भी की कृपा अस को कृपालु राघव ।
एक दिन करिहौ कृपा यह है भरोसा राघव।
देर है अंधेर नहिं है द्वार तुम्हरे राघव ।
या कृपा करु या चला दो बाण निज कर राघव ।
जी लिया हौं बहुत तुम बिनु अब न जीऊँ राघव ।
अब न छोड़ें तोरा पाछा हौं हठी सुत राघव ।
हौं पतित तुम पतित पावन, करहु पावन राघव ।
कर कृपा तुम बिनुहि कारण बेर क्यों पुनि राघव ।
तुम हो राम 'कृपालु ' पुनि क्यों कृपा नहिं कर राघव।
ब्रज रस माधुरी पार्ट~1