अच्छे का श्रेय तो हम स्वयं ले लेते हैंl कुछ यह सोचकर कि मैं तो बचपन से ही बहुत इंटेलीजेंट थाl मैंने तो डिक्लेअर कर दिया था कि कम्पटीशन में कोई रोक नहीं सकता मुझे, मैंने तो पहले ही कह दिया था मार्किट गिरने वाली है, सारे शेयर बेच दो, इस प्रॉपर्टी की कीमत बढ़ेगी ही, और देखा, बढ़ी ना! बुरे का आरोप दूसरे पर मढ़ देते हैंl उसकी नज़र लग गयी, उसने पॉलिटिक्स कर दी, फलां की वज़ह से प्रमोशन नहीं हुआ; समय खराब था, भगवान ने भी साथ नहीं दिया, आदिl
अक्सर लोग अच्छे-बुरे दोनों को समान भाव से स्वीकार नहीं करते हैंl कोई बिरला ही कहेगा; दो मकान हैं, बहुत बड़ा व्यापार है और कैंसर है, एक आँख खराब हैl क्यों?
हमारे भीतर एक है अहंl अहं का विश्वास है कि जिस शरीर में वह है उस शरीर को सब सुखों का अधिकार है, वह सर्वज्ञ है, कभी भूल-चूक कर ही नहीं सकता, सब लोगों को उसे महत्व देना चाहिए, वह जिसका चाहे सम्मान करे – जिसका चाहे अपमान करेl
इस अहं के नियंत्रण के बिना यदि जग में व्यवहार किया तो संसार से हम और हम से संसार उश्रृंखलतापूर्ण, अशिष्ट, उद्दंड व्यवहार करेगाl
अहं हम मिटा तो सकते नहींl किस प्रकार इस अहं को नियंत्रित किया जाय?
क्रमश:.................................
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