ठाकुर युगल किशोर हमारो चाकर हम पियप्यारी के
गुरु सेवा ही धर्म हमारो दास ना हम श्रुति चारी के
एक ब्रज-रसिक कहता है कि हमारे ठाकुर हमारे सेव्य हमारे आराध्य
केवल श्री राधा-कृष्ण ही है वेदों मे कहा गया है कि
श्लोक
जैसे भक्ति राधा-कृष्ण मे हो ठीक वैसे ही गुरु मे हो इसलिए अब तीन
हो गए स्वामी - राधा-कृष्ण और गुरु बस इनकी सेवा उपासना ही
हमारा धर्म है
श्लोक
गुरु कि शरणागति मे जाओ वो गुरु श्रोतिय भी हो और ब्रह्मनिष्ठ भी
हो अथार्थ कि theoretical भी हो और practical भी हो
श्लोक
बार बार वेड कहता है - उठो जागो, गुरु कि शरण मे जाकर क्या करना
है? कैसे करना है? खान जाना है उसका ज्ञान प्राप्त करो
श्लोक
गुरु कि शरण मे जाओ मन से, खाली तन से नहीं सिर रख दिया चरण पे
ये शरणागति नहीं है मन से शरणागति नहीं है मन से शरणागति करना
है सेवा करो गुरु कि आज्ञा का पालन करो समझो हम कौन हैं? माया क्या
है? संसार क्या है? ब्रह्म क्या है ? तब ज्ञान होगा तब practical side से
आगे बढोगे भागवत मे लिखा है
श्लोक और पद
इस प्रकार ३ personalty हैं राधा-कृष्ण-गुरु तो वो कहता है हमारा धर्म
है गुरु सेवा भगवान पहले मिलेंगे नहीं उनकी सेवा तो गोलोक मे मिलेगी
अतः गुरु कि सेवा हमारा धर्म है वेदों मे जो लिखा है उसे हम दूर से नमस्कार
करते है हम जिस मार्ग पर चलते है वहाँ हम वेदों को दूर से प्रणाम करते
है गौरांग महाप्रभु ने कहा
चैतन्य-उद्गार
हम वेदों को दूर से नमस्कार करते है क्यों? वहाँ राधा-कृष्ण कि लीला नहीं
हैं, खोपडा भंजन लिखा है उन लीलाओ से ही तो सात्विक भावो का उद्वेग
होगा जब तक सात्विक भाव ना प्रकट होंगे तब तक अन्तःकरण शुद्ध कैसे
होगा? श्यामसुंदर का नाम लेकर कंप हो रोमांच हो तब अन्तःकरण शुद्ध
होगा
आपने देखा होगा पंडितो को वे ऐसे वेद-मंत्र बोलते है जैसे युद्घ कर रहे है
(श्री महाराजजी कुछ श्लोक को action के साथ बोलते है )
भगवान से भी अहंकार करते है हमने याद कर लिया वेदमंत्रों को इनको
दीनता कहाँ आएगी ये तो वेदों का ज्ञान लेकर अंहकार कर लिए है ये
जो थोडा-थोडा ज्ञान कर लेते है बहुत ही खतरनाक है जो घोर मुर्ख है
वाल्मीकि को गुरु ने कहा मरा मरा जप करते जाओ , अच्छा जब तक मै
ना लोटू तब तक करते जाओ, अच्छा गुरूजी आप कब आओगे ये नहीं पूछा
वाल्मीकि ने जो गुरु ने कहा वो किया और महापुरुष हो गया रामावतार मे राम
के जन्म से पहले ही 'रामायण' लिख दी केवल श्रद्धा और शरणागति ही करनी है
फिर कुछ करना ही नहीं है
या तो फिर ऐसा विद्वान् हो जिसने सरे शास्त्रों वेदों को पढ़कर सार ज्ञान पाकर भगवान
के चरणों मे फेंककर राधे-राधे करता हो
तो हमें रागानुगा भक्ति मे वेद कि कुछ भी आवश्यकता नहीं है वेधी भक्ति मे वेद-धर्म का
पालन करना होता है वेधी माने विधि वेद मे २ बाते लिखी है विधि और निषेध
विधि माने क्या - ये करो सत्य बोलो, निषेध माने ये ना करो झूठ ना बोलो
हमारी रागानुगा भक्ति मे क्या विधि-निषेध है -
श्लोक
सदा राधा-कृष्ण को याद करे ये विधि और उनको कभी ना भूलना ये निषेध हैं
बस हो गया सब जान लिया वेद-सार
श्लोक
सारी वेद कि ऋचाएं कृष्ण कि ओर इशारा करती है एक एक मंत्र कृष्ण प्राप्ति के
लिए हैं
श्लोक
श्री कृष्ण भगवान कह रहे है कर्म-ज्ञान-भक्ति क्या है कोई नहीं जानता केवल
मै जानता हूँ वे तो जानते ही है सर्वज्ञ है- क्या जानते है बताओ -
मेरे निमित कर्म - कर्म
मेरे निमित ज्ञान - ज्ञान
मेरे निमित प्रेम- भक्ति
इसलिए वो रागानुगा भक्ति वाला कहता है हम विधि -निषेध के दास नहीं है
भगवान को प्यार करने वाला वेद पर पांव रखकर आगे बढ़ता है जब सामान्य
जीव मरता है तो यमराज अपने servant को भेजता है ओर सात्विक लोगो के
लिए खुद आता है ओर उन्हें घसीट कर लेकर जाता है और महापुरुषों के सामने
आकर बैठ जाता है और महापुरुष उसके सिर पर अपना पांव रखकर विमान मे
बैठते है
भक्त राधा-कृष्ण-गुरु इन ३ के बाहर नहीं जाता है, वो अनंत-कोटि बर्ह्माण्ड कि साधना
कर चूका अरे देवता रूठ जावे तो?? अरे हिम्मत है कि रूठ जावे अगर रूठ जावे तो
वो ही हाल होगा जी दुर्वासा का हुआ भगवान का चक्र चल जायेगा और रुठेंगे क्यों तुम कोई
हानी थोड़े ही कर रहे हो
भक्त को कुछ नहीं सोचना उसकी विधि राधा-कृष्ण का सुख और निषेध उनको एक क्षण भी ना
भूले अगर भूले तो निषेध का पालन ना किया
निरंतर उनका स्मरण रहे भूले ना अगर भूले तो विधि का पालन ना किया भुला मतलब संसार मे गया
pending मे ना रहा मन एक है या तो भगवान मे रहेगा या संसार मे, भगवान से हटा तो संसार मे गया
और अगर उसी समय मरा तो संसार मिलेगा अंतिम समय मे राधा-कृष्ण का ध्यान रहा तो गोलोक जाओगे
challenge हैं
रसिको के लिए वेदों का पालन करना जरुरी नहीं है उसे राधा-कृष्ण कि भक्ति निरंतर और बिना कामना के करना है ये मैंने उन दो पंक्तियों का मतलब बताया
श्री महाराजजी
प्रवचन -संस्कार चैनल
दिनांक : २२/०९/०९
समय : ०७:०० pm