श्री गुरवे नम:
हर्योल्लास-गुर्वोल्लास
महाशिवरात्रि की शुभकामनाएं
विचार का कार्य है मन में वांछित व्यक्ति, वास्तु, परिस्थिति या स्थल ले आनाl भावनाएं विचार की अनुगामी होती हैंl जिस विषय पर विचार पहुँच चुके हैं उसतक पहुँच कर उसे रस मिश्रित कर (चाहे रस मीठा हो अथवा कड़वा) उसका रस इन्द्रियों के शब्द, स्पर्श आदि से मन को देना भावनाओं का काम हैl अक्सर विचार बिखरे होते हैं, फलस्वरूप भावनाएं भी बिखरी होती हैं, इसलिए मन भी भ्रमित (confused) रहता है और मनुष्य आनंद रहित, निराश, अवसाद ग्रस्त या बोर बना रहता हैl
विचार और भावनाओं को केन्द्रित करने से ही यह अनानंद की स्थिति दूर होती है और यह केन्द्रीकरण होता है जब कोई संकल्प, कोई इरादा, उद्देश्य, या सेंस ऑफ़ पर्पस होता हैl
अत: प्रसन्नता के लिए सेंस ऑफ़ पर्पस अत्यंत आवश्यक हैl
सेंस ऑफ़ पर्पस दो ही हो सकते हैं, भौतिक और आध्यात्मिकl दोनों ही आवश्यक हैं, साथ साथ पूरे हो सकते हैंl गीता में श्री कृष्ण कहते ही हैं, मेरा स्मरण भी करो और युद्ध भी, इस जीवन समर में तुम्हारा योगक्षेम मैं वहन करूंगाl
इसलिए बिखरी विचारों और दिशाहीन भावनाओं से कोई भी लाभ नहीं हैl न भौतिक, न आध्यात्मिकl
विचार दिशाहीन कब होते हैं? भावनाएं भ्रमित क्यों होती है?
क्रमश:............................
